
सबसे बड़ा स्थान है। भारत के द्वितीय राष्ट्रपति डॉ.सर्वपल्ली राधाकृष्णन के
जन्मदिवस के उपलक्ष्य में मनाया जाने वाला शिक्षक दिवस एक पर्व की तरह है,
जो शिक्षक समुदाय के मान-सम्मान को बढ़ाता है।
भारत में प्राचीन
समय से ही गुरु व शिक्षक परपरा चली आ रही है। गुरुओं की महिमा का वृतात
ग्रंथों में मिलता है। भारतीय संस्कृति में गुरु का ओहदा भगवान से भी ऊंचा
माना गया है।
कहा भी गया है- गुरु गोबिंद दोऊ खड़े, काके लागू पाय, बलिहारी
गुरु आपनो जो गोविंद दियो मिलाय।
‘डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन’ के बारे में–
भारत के तमिलनाडु प्रदेश में चेन्नई के पास तिरूतनी नाम के एक गांव में 1888
को प्रकांड विद्वान और दार्शनिक डॉ.सर्वपल्ली राधाकृष्णन का जन्म हुआ था।
वे बचपन से ही मेधावी थे। उन्होंने दर्शन शास्त्र में एम.ए. की उपाधि ली और
सन 1916 में मद्रास रेजीडेंसी कॉलेज में दर्शनशास्त्र के सहायक प्राध्यापक
नियुक्त हो गए। इसके बाद वे प्राध्यापक भी रहे। डॉ. राधाकृष्णन ने अपने
लेखों और भाषणों के माध्यम से विश्व को भारतीय दर्शनशास्त्र से परिचित
कराया। सारे विश्व में उनके लेखों की प्रशंसा की गई।
शिकागो
विश्वविद्यालय ने डॉ. राधाकृष्णन को तुलनात्मक धर्मशास्त्र पर भाषण देने के
लिए आमंत्रित किया। वे भारतीय दर्शन शास्त्र परिषद् के अध्यक्ष भी रहे।
कई भारतीय विश्वविद्यालयों की भांति कोलंबो एवं लंदन विश्वविद्यालय ने भी
अपनी अपनी मानद उपाधियों से उन्हें सम्मानित किया। विभिन्न महत्वपूर्ण
उपाधियों पर रहते हुए भी उनका सदैव अपने विद्यार्थियों और संपर्क में आए
लोगों में राष्ट्रीय चेतना बढ़ाने की ओर रहता था।
डॉ. राधाकृष्णन
अपने राष्ट्रप्रेम के लिए विख्यात थे फिर भी अंग्रेजी सरकार ने उन्हें सर
की उपाधि से सम्मानित कि वे छल कपट से कोसों दूर थे। अहंकार तो उनमें नाम
मात्र भी न था। भारत की स्वतंत्रता के बाद भी डॉ. राधाकृष्णन ने अनेक
महत्वपूर्ण पदों पर कार्य किया वे पेरिस में यूनेस्को नामक संस्था की
कार्यसमिति के अध्यक्ष भी बनाए गए।
यह संस्था संयुक्त राष्ट्र संघ
का एक अंग है और पूरे संसार के लोगों की भलाई के लिए अनेक कार्य करती है।
सन 1949 से सन 1952 तक डॉ. राधाकृष्णन रूस की राजधानी मास्को में भारत के
राजदूत पद पर रहे। भारत रूस की मित्रता बढ़ाने में उनका भारी योगदान रहा
था।
सन 1952 में वे भारत के उपराष्ट्रपति बनाए गए। इस महान दार्शनिक
शिक्षाविद और लेखक को भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद जी ने
देश का सर्वोच्च अलंकरण भारत रत्न प्रदान किया। 13 मई, 1962 को डॉ.
राधाकृष्णन भारत के द्वितीय राष्ट्रपति बने। सन 1967 तक राष्ट्रपति के रूप
में उन्होंने देश की अमूल्य सेवा की।
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